हिंदी साहित्य के छायावादी युग की प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित साहित्यकार महादेवी वर्मा के हृदय में बचपन से ही जीवों के प्रति करुणा और प्रेम भाव था. उन्हें ठंडक में कूं कूं करते हुए पिल्लों का भी ध्यान रहता था. वो पशु-पक्षियों का लालन-पालन और उनके साथ खेलकूद में ही दिन बिताती थीं. चित्र बनाने का शौक भी उन्हें बचपन से ही था. उनके व्यक्तित्व में जो पीड़ा, करुणा, वेदना और विद्रोहीपन था, वो उनके लेखन में भी दिखाई देता है. उनकी कहानियों में अहं है, दार्शनिकता है और आध्यात्मिकता भी है. इसके बीज उनके भीतर बहुत कम उम्र में ही पड़ गए थे. शायद यही वजह थी, कि उन्होंने गिल्लू जैसी प्यारी कहानी लिखी. ये कहानी जीव-जन्तुओं पर दया का भाव रखने और उनसे प्रेम करने की प्रेरणा देती है, साथ ही कहानी मनुष्य के प्रति एक नन्ही गिलहरी के प्रेम को भी बड़े रोचक और आत्मीय ढंग से पेश करती है. गिल्लू का आना फिर चले जाना, कहानी में दोनों ही चीज़ें मन को रुलाती भी हैं और गुदगुदाती भी हैं. कहानी में महादेवी वर्मा ने गिलहरी के एक छोटे से बच्चे की चंचलता, उसके क्रियाकलापों और उसके प्रति प्रेम का रोचक चित्रण किया है. आइए पढ़ते हैं महादेवी वर्मा की छोटी कहानी गिल्लू…
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